Wednesday, 13 July 2011

धंधा हो तो ऐसा!

बीते साल हिंदी फिल्म उद्योग फिल्म निर्माण के लिहाज कोई खास अच्छा नहीं रहा। कमाई और फिल्मों की संख्या, दोनों के लिहाज से। मगर चौंकाने वाली कुछ ऐसी घटनाएं हुईं, जिनकी वजह से इसे याद रखा जाएगा। चौंकाने वाली पहली बात तो यही है कि बड़ी फिल्मों में काफी दांव लगाया गया। हालत यह थी कि अमूमन एक पूरी फिल्म के निर्माण में जितना खर्च होता है, उतने पैसे तो सिर्फ एक गाने के फिल्मांकन में ही लग गए। इस तरह के निवेश से कमाई भी अच्छी-खासी हुई।
पिछले साल दबंग सबसे कामयाब फिल्म रही। इस पर 60 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। मगर साल के अंत तक इसने 146 करोड़ रुपये की कमाई कर ली थी और 2011 के अंत तक यह 300 करोड़ से ज्यादा का मुनाफा कमा ले तो हैरत नहीं।
भारत में और कोई धंधा ऐसा नहीं है, जो महज तीन साल के निवेश पर 500 फीसदी मुनाफा दे। लेकिन यह उस विश्व रिकॉर्ड से दूर है, जिसे फिल्म जय संतोषी मां ने कायम किया था। यह फिल्म महज आठ लाख रुपये के बजट से तैयार की गई थी, और इसने 11 करोड़ रुपये का कारोबार किया था।
फिल्म गोलमाल-3 ने 35 करोड़ रुपये के निवेश पर 108 करोड़ रुपये बटोरे। इस सीरीज की तीन फिल्मों पर कुल 95 करोड़ रुपये की लागत आई थी और इन तीनों फिल्मों ने दुनिया भर में अब तक 350 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार किया। निवेश और कमाई के लिहाज से देखें तो यह फिल्म दबंग से कहीं अधिक कामयाब रही। राजनीति ने 40 करोड़ के निवेश पर 93 करोड़ रुपये कमाए और इसके साथ ही यह प्रकाश झा की लगातार तीसरी सफल फिल्म बन गई। फिल्म माई नेम इज खान आज तक 74 करोड़ रुपये की कमाई कर चुकी है। इस पर 40 करोड़ रुपये खर्च हुए थे और अभी यह और कमाई करेगी। यही नहीं, इसी फिल्म की वजह से 21 साल बाद भारतीय फिल्मों का चीन में प्रवेश हो सका है। फिल्म तीसमार खान 50 करोड़ की लागत से तैयार की गई थी और शुरुआत में तो इसे कारोबार के लिहाज से फ्लॉप मान लिया गया था, मगर दिसंबर, 2010 तक इसने भी 70 करोड़ रुपये की कमाई की थी।
दो ऐसी फिल्में भी थीं, जिनके बारे में किसी ने अंदाजा नहीं लगाया था कि ये कभी कमाई भी कर सकती हैं। इनका बजट भी बहुत कम था। इनमें से एक थी, वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई, जिस पर 15 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, और इसने 59 करोड़ की कमाई की। दूसरी फिल्म थी, आई हेट लव स्टोरीज, जिस पर कुल 18 करोड़ निवेश किया गया और इसने 46 करोड़ रुपये का कारोबार कर लिया।
पिछले साल कोई फिल्म बुरी तरह नाकाम रही, तो वह थी, काइट। 110 करोड़ रुपये के निवेश पर यह सिर्फ 51 करोड़ ही कमा सकी। इसी तरह वीर भी 100 करोड़ की लागत से तैयार की गई थी, मगर यह सिर्फ 40 करोड़ ही वापस ला सकी। यही नहीं, मणिरत्नम की रावण का हिंदी संस्करण भी बुरी तरह घाटे का सौदा साबित हुआ। हालांकि तमिल संस्करण ने उनकी फिल्म कंपनी को बचा लिया। हिंदी फिल्मों का अपना आकर्षण है, मगर यह जोखिम का धंधा है। हालत यह है कि उत्तर भारत के छोटे रिटेल कारोबार से जुड़े लोग भी यहां पैसा लगाना चाहते हैं। वह कहते हैं कि फिल्म कारोबार अच्छा धंधा है, बाकी तो सरकारी धंधा है। 

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