Saturday 16 July 2011

पंडित जी गच्चा दे गए

शादी में दूल्हा भी था और दुल्हन भी। बरातियों के साथ-साथ सरातियों की संख्या भी अच्छी खासी थी। दावतें चल रही थीं। बैंड बाजे के साथ डीजे की धुन पर नाचते कुछ लोग भी थे। शादी का मुहूर्त रात एक बजे का था। तब पंडितजी की तलाश शुरू हुई। जब शादी की रस्म की बात आई, तो पता चला कि पंडितजी दगा दे गए हैं। मोबाइल मिलाया गया तो बंद मिला। परिजनों ने मंदिरों में जाकर किसी और पंडित जी की तलाश की, लेकिन लगन तेज होने के कारण सभी कहीं न कहीं व्यस्त थे। फिर सबकी समझ में आया कि पंडितजी गच्चा दे गए। कुछ देर तो सब सकते में आ गए। लेकिन तभी किसी ने सुझाव दिया कि मंत्र ही तो कहने हैं, किसी से बुलवा देते हैं। फिर क्या शीघ्र ही गैर पेशेवर पंडितों के लिए बातचीत शुरू हुई। रात के दो बजे कहींसे तीन ब्राह्मणों को बुलाया गया। वो भी इसी मुहल्ले के आसपास रहते थे। उन्हें बुलाकर उनसे किसी तरह दो-चार मंत्र पढ़कर शादी कराने का अनुरोध किया।

दोनों आए भी लेकिन उनके मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे थे। पंडितजी क्यों नहीं आए। कोई विवाद तो नहीं हो गया। ऐसी चर्चा थी कि शादी समारोह में पंडितजी आए थे, लेकिन उन्हें किसी ने भड़का दिया। दरअसल, कुछ महीने पहले देर से आने पर एक पंडित इसी मुहल्ले में पिट गए थे। किसी ने दक्षिणा कम मिलने की शिकायत की। खैर। मामला कुछ भी रहा हो लेकिन अब समाज की प्रतिष्ठा की बात थी। दोनों पक्ष के लोग परेशान थे। यदि कोई पंडित न मिला तो कैसे होगी शादी की रस्म। बात संभलती दिखी तभी फिर नया विघ्न खड़ा हो गया। इस बार पूजा कराने आए एक सजजन के घर से गुस्से में भरा फोन था। उनसे कहा गया कि वो इस तरह पूजा न कराएं। नए बने पंडितजी घबराए, धोती उतारी, पैंट पहनी और चलते बने। किसी की नहीं सुनी। उन्होंने बस यही कहा कि पत्नी की तबियत अचानक बिगड़ गई है।


जबकि सच यह था कि वह माहौल देख घबरा गए थे। बाकी बचे दो लोगों ने विनम्रता से कहा, ‘शादी कभी नहीं कराई, लेकिन सिर्फ सामान्य पूजा का मंत्र जानते हैं।’ परिजनों ने कहा, ‘कोई बात नहीं, बात प्रतिष्ठा की है। कुछ मंत्र और हवन कराकर शादी आधे घंटे में संपन्न करा दें।’ समाज के अनुभवी लोगों ने मिलकर गायत्री मंत्र के साथ शादी शुरू की। बात इतने से थम जाती तो ठीक था। पर अभी वाकए का चरम भी देखा जाना था। इस बार बात अटक गई सात वचनों पर। उस समय शादी कराने वाले उन लोगों के पास कर्मकांड की किताब भी नहीं थी। आज किसे याद रहते हैं शादी के सात वचन। मगर सात वचन तो दिलाने ही थे। ले देकर किसी को कोई वचन याद, तो किसी को कोई। मिलाजुला कर सात वचन कह दिए गए। किसी तरह शादी डेढ़ घंटे में पूरी हुई। तब दूल्हा-दुल्हन ने चैन की सांस ली। दोनों पक्षों को इस विवाह संस्कार से संतोष था, लेकिन आसपास लोगों में कई दिनों तक यह शादी चर्चा का विषय बनी रही।

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