भरी दोपहरी में दरवाजे की घंटी बजती है, तो आलस के मारे उठने का मन नहीं करता। अनमनी-सी घर की मालकिन दरवाजा खोलकर प्रश्नवाचक पोज में आकर खड़ी हो जाती है। इधर जब से सरकार ने वोट और वोटर पहचान पत्र बनाने की मुहिम तेज कर रखी है, सरकारी बाबू घर-घर अलख जगा-जगाकर हकलान हो गया है। स्त्री को अधिकारपूर्वक अपना दरवाजा घेरकर खड़ा होता देखकर यह सरकारी नौकर थोड़ा झिझकता है और हकलाकर कहता है, ‘साहब घर में हैं क्या?’ स्त्री भृकुटि तानकर काउंटर प्रश्न करती है, ‘क्या काम है?’ बाबू विनीत स्वर में कहता है, ‘उनसे ही काम था, वह नहीं होंगे तो फिर वही प्रश्न आप से पूछा जाएगा।’
स्त्री की मानुषी सुलभ जिज्ञासाएं अपने चरम पर हैं। खुद को यूं बेकार, दोयम दर्जे का और नाकारा समझे जाने का उसे गहरा क्षोभ है। वह गुस्से में फुंफकारती हुई बोलती है,‘ ऐसा कौन-सा यक्ष प्रश्न है जो सिर्फ मेरे मर्द से ही पूछोगे तुम? मान लो कि आज मेरे साहब इस समय घर पर होते हुए भी घर पर नहीं हैं, अब पूछो क्या बात है? मैं ही जवाब दूंगी। हम औरतें गूंगी हो गई हैं क्या?’
बाबू आत्मसमर्पण करके दास भाव से जबरन मुस्कराकर सारी बात खोलता है, ‘यह सर्वे एक्साइज विभाग करवा रहा है। सरकार जानना चाहती हैं कि हर घर जाकर पता करो कि कौन कितनी शराब पीता है। चलो अब बता दो कि आपकेमियां कितनी शराब पी जाते होंगे?’
स्त्री ने पलटवार किया, ‘उनकी यह मजाल कि मेरे सामने शराब जैसी जहरीली चीज को हाथ लगा सकें। यह बताओ कि सरकार शराबियों की गिनती क्यों कर रही है? कहीं यह खिचड़ी सरकार अपनी कुर्सी की खातिर मुफ्त बिजली, आटे व दाल की तरह मुफ्त में शराब बांटने की तैयारी तो नहीं कर रही। कुछ भरोसा नहीं इन भ्रष्ट नेताओं का। वोट बैंक बनाने के लिए ये किसी भी स्तर पर गिर सकते हैं।’ सर्वे बाबू बड़ी मुश्किल से अपना पिंड छुड़ाकर दूसरे घर की तरफ भागे। थोड़ी देर बाद सर्वे बाबू ने अपना सवाल दोहराया। इस घर का आदमी पर्दे में रहने वाला जीव था। घर से बाहर वह खुलेआम खाता-पीता था, मगर बीवी के सामने नैतिकता की आड़ में खड़ा होकर बोला, ‘अरे साहब! रात-दिन धंघे की भागदौड़ में इतनी फुर्सत ही कहां कि दो घड़ी बैठकर सुकून से पी सकें।’
स्त्री ने कौतूहल भाव से पूछा, ‘ये किस तरह का सर्वे है जी? शराब पीने केबारे में क्यों पूछ रहे हो? कहीं इन्हें पिलाने का इरादा तो नहीं है? ये तो कभी- कभार पीते हैं, शादी-ब्याह या पार्टी में। मगर आप को इससे क्या लेना-देना?’
बाबू बताते-बताते पक गया था। उसने वही बोर कथा दोहराई जो वह पिछले पचास घरों में सुना चुका था, ‘सरकार घर-घर बाबू भेजकर सर्वे करके आंकड़े जमा कर रही है कि शराब से मिलने वाले राजस्व का सही-सही हिसाब लगाया जा सके। सरकार को लगता है कि शराब की खपत बहुत बढ़ी है, मगर उस अनुपात में सरकार का राजस्व नहीं बढ़ा है। कहीं कोई माफिया फायदा तो नहीं उठा रहा है।
हर किसी को यह सब बताते-बताते बाबू हलकान हो जाता है। तभी बाबू की मुलाकात नशे में चूर एक शराबी से होती है। बाबू जुगत से काम निकालता है। उस शराबी की मांग है-मात्र शराब का एक पव्वा। उसकी डिमांड पूरी करने का आश्वासन देकर बाकी बचे सौ घरों में शराब पीने और न पीने वालों के बारे में सारी सूचनाएं, उस शराबी से लेकर सर्वे शीट भरकर आधे घंटे में ही वहां से फुर्र हो जाता है। सच! शराब के सारे भेद सिर्फ शराबी ही जानता है।
स्त्री की मानुषी सुलभ जिज्ञासाएं अपने चरम पर हैं। खुद को यूं बेकार, दोयम दर्जे का और नाकारा समझे जाने का उसे गहरा क्षोभ है। वह गुस्से में फुंफकारती हुई बोलती है,‘ ऐसा कौन-सा यक्ष प्रश्न है जो सिर्फ मेरे मर्द से ही पूछोगे तुम? मान लो कि आज मेरे साहब इस समय घर पर होते हुए भी घर पर नहीं हैं, अब पूछो क्या बात है? मैं ही जवाब दूंगी। हम औरतें गूंगी हो गई हैं क्या?’
बाबू आत्मसमर्पण करके दास भाव से जबरन मुस्कराकर सारी बात खोलता है, ‘यह सर्वे एक्साइज विभाग करवा रहा है। सरकार जानना चाहती हैं कि हर घर जाकर पता करो कि कौन कितनी शराब पीता है। चलो अब बता दो कि आपकेमियां कितनी शराब पी जाते होंगे?’
स्त्री ने पलटवार किया, ‘उनकी यह मजाल कि मेरे सामने शराब जैसी जहरीली चीज को हाथ लगा सकें। यह बताओ कि सरकार शराबियों की गिनती क्यों कर रही है? कहीं यह खिचड़ी सरकार अपनी कुर्सी की खातिर मुफ्त बिजली, आटे व दाल की तरह मुफ्त में शराब बांटने की तैयारी तो नहीं कर रही। कुछ भरोसा नहीं इन भ्रष्ट नेताओं का। वोट बैंक बनाने के लिए ये किसी भी स्तर पर गिर सकते हैं।’ सर्वे बाबू बड़ी मुश्किल से अपना पिंड छुड़ाकर दूसरे घर की तरफ भागे। थोड़ी देर बाद सर्वे बाबू ने अपना सवाल दोहराया। इस घर का आदमी पर्दे में रहने वाला जीव था। घर से बाहर वह खुलेआम खाता-पीता था, मगर बीवी के सामने नैतिकता की आड़ में खड़ा होकर बोला, ‘अरे साहब! रात-दिन धंघे की भागदौड़ में इतनी फुर्सत ही कहां कि दो घड़ी बैठकर सुकून से पी सकें।’
स्त्री ने कौतूहल भाव से पूछा, ‘ये किस तरह का सर्वे है जी? शराब पीने केबारे में क्यों पूछ रहे हो? कहीं इन्हें पिलाने का इरादा तो नहीं है? ये तो कभी- कभार पीते हैं, शादी-ब्याह या पार्टी में। मगर आप को इससे क्या लेना-देना?’
बाबू बताते-बताते पक गया था। उसने वही बोर कथा दोहराई जो वह पिछले पचास घरों में सुना चुका था, ‘सरकार घर-घर बाबू भेजकर सर्वे करके आंकड़े जमा कर रही है कि शराब से मिलने वाले राजस्व का सही-सही हिसाब लगाया जा सके। सरकार को लगता है कि शराब की खपत बहुत बढ़ी है, मगर उस अनुपात में सरकार का राजस्व नहीं बढ़ा है। कहीं कोई माफिया फायदा तो नहीं उठा रहा है।
हर किसी को यह सब बताते-बताते बाबू हलकान हो जाता है। तभी बाबू की मुलाकात नशे में चूर एक शराबी से होती है। बाबू जुगत से काम निकालता है। उस शराबी की मांग है-मात्र शराब का एक पव्वा। उसकी डिमांड पूरी करने का आश्वासन देकर बाकी बचे सौ घरों में शराब पीने और न पीने वालों के बारे में सारी सूचनाएं, उस शराबी से लेकर सर्वे शीट भरकर आधे घंटे में ही वहां से फुर्र हो जाता है। सच! शराब के सारे भेद सिर्फ शराबी ही जानता है।
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