औद्योगिक विकास दर में निरंतर आती गिरावट अर्थव्यवस्था के लिए तो घातक है ही, इससे 12वीं पंचवर्षीय योजना की बुनियाद कमजोर पड़ने की भी आशंका है। आंकड़े बताते हैं कि विगत मई में औद्योगिक उत्पादन घटकर 5.6 फीसदी रह गया, जो पिछले नौ महीनों में सबसे कम है। जाहिर है, उद्योग क्षेत्र की यह बदहाली कोई एक दिन में नहीं हुई है। पिछले लगभग एक साल से कमोबेश यही स्थिति है। जनवरी, 2010 में उद्योग क्षेत्र ने जब ऊंची छलांग लगाई थी, तब लगा था कि दोहरे अंकों की विकास दर का लक्ष्य अब ज्यादा दूर नहींहै, लेकिन उसके बाद से औद्योगिक उत्पादन में गिरावट का जो दौर शुरू हुआ, वह न सिर्फ बदस्तूर जारी है, बल्कि निकट भविष्य में इसकी तसवीर बदलने की कोई सूरत भी नजर नहीं आती।
दरअसल ईंधन के मूल्यों में सतत बढ़ोतरी और ब्याज दर बढ़ाने की रिजर्व बैंक की लगातार कवायदों ने उद्योगों को बुरी तरह प्रभावित किया है। उद्योग क्षेत्र में मैन्युफैक्चरिंग यानी विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 80 फीसदी होती है, जबकि इस क्षेत्र की हालत दिनोंदिन बदतर होती जा रही है। यही हाल खनन क्षेत्र का है। हालांकि मई का आंकड़ा आने के बाद सरकार ने उद्योग क्षेत्र को आश्वासन दिया है कि उसे राहत देने के लिए वह प्रभावी कदम उठाएगी। लेकिन जो मौजूदा स्थिति है, उसे देखते हुए मानना मुश्किल है कि निकट भविष्य में उद्योगों की सेहत सुधरने वाली है।
ईंधन के मूल्यों में बढ़ोतरी से महंगाई का ग्राफ ऊपर जा रहा है; जून में मुद्रास्फीति 9.44 फीसदी पर पहुंच गई, और आने वाले दिनों में इसके बढ़कर 10 फीसदी के भी पार हो जाने की आशंका है। मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के उद्देश्य से ही केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी करता आया है। मार्च, 2010 के बाद से वह अब तक 10 बार ब्याज दरों में वृद्धि कर चुका है, और आसार यही है कि इस महीने के अंत में वह एक बार फिर इस मौद्रिक कवायद को अंजाम देगा। ऐसे में, उद्योग क्षेत्र का क्या होगा, यह सोचने वाली बात है। फिर सवाल अर्थव्यवस्था का भी है।
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