Saturday 16 July 2011

सावन में बोलें,बम भोले

श्रावण माह शिव पूजा, रुद्राभिषेक, मोक्ष प्राप्ति औैर दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति दिलाने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। हर जीवात्मा चाहे वह ॐ रूपी परमात्मा के किसी भी रूप का पूजक हो, इस माह में शिवमय हो जाता है। इस माह में एक बेल पत्र भी अगर शिव जी को अर्पित किया जाए, तो वह अमोघ फलदायी होता है। जिस प्रकार मकर राशि पर सूर्य के पहुंचने पर सभी देवी-देवता, यक्ष आदि पृथ्वी पर आते हैं, उसी प्रकार कर्कराशिगत सूर्य में भी सभी देवी-देवता पृथ्वी पर आते हैं।स्वयं भगवान विष्णु, ब्रह्मा, इंद्र, शिवगण आदि श्रावण में पृथ्वी पर ही वास करते हैं और सभी अलग-अलग रूपों में अनेक प्रक्रार से शिव आराधना कर अपना पुण्य बढ़ाते हैं। सावन मास के महत्व के पीछे स्वयं भगवान शिव का वरदान है।

समुद्र मंथन के समय जब कालकूट नामक विष निकला, तो उसके ताप से सभी देवी-देवता भयभीत हो गए। तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई। किसी के पास भी इसका निदान नहीं था। तभी सभी देवता भगवान शिव की शरण में गए। तब लोक कल्याण के लिए भोलेनाथ ने इस विष का पान कर लिया और उसे अपने गले में ही रोक लिया, जिसके प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया और वे नील कंठ कहलाए। विष के ताप से व्याकुल शिव तीनों लोकों में भ्रमर करने लगे, पर कहीं भी उन्हें शांति नहीं मिली। अंत में वे पृथ्वी पर आकर पीपल के वृक्ष के पत्तों को चलता हुआ देख उसके नीचे बैठ गए, जहां कुछ शांति मिली।
शिव के साथ ही सभी तैंतीस करोड़ देवी-देवता उस पीपल वृक्ष में अपनी शक्ति समाहित कर शिव को सुंदर छाया और जीवनदायिनी वायु प्रदान करने लगे। चंद्रमा ने अपनी पूर्ण शीतल शक्ति से शिव को शांति पहुंचाई, तो शेषनाग गले में लिपटकर उस कालकूट विष के दाह को कम करने में लग गए। देवराज इंद्र और गंगा शिव शीश पर जलवर्षा करने लगे। सभी शिव गण भांग, धतूरा, बेलपत्र आदि शिव को खिलाने लगे, जिससे भोलेनाथ को शांति मिली। इस तरह श्रावण मास की समाप्ति तक भगवान शिव पृथ्वी पर ही रहे। उन्होंने चंद्रमा, पीपल वृक्ष, शेषनाग आदि सभी को वरदान दिया कि इस माह में जो भी जीव मुझे पत्र, पुष्प, भांग, धतूर और बेल पत्र आदि चढ़ाएगा, उसे संसार के तीनो कष्टों यानी तापों से मुक्ति मिलेगी और उसे शिवलोक की प्राप्ति होगी।
चंद्रमा और शेषनाग पर विशेष अनुग्रह करते हुए शिव ने कहा कि जो तुम्हारे दिन यानी सोमवार को मेरी आराधना करेगा, वह मानसिक कष्टों से मुक्त हो जाएगा। उसे किसी प्रकार की दरिद्रता नहीं सताएगी। शेषनाग को शिव ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो इस माह में नागों को दूध पिलाएगा, उसे काल कभी नहीं सताएगा और उसकी वंश वृद्धि में कोई रुकावट नहीं आएगी। गंगा मां को भगवान शिव ने कहा कि जो इस माह में गंगा जल मुझे अर्पित करेगा, वह जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाएगा। पीपल वृक्ष को आशीर्वाद देते हुए भोले ने कहा कि तुम्हारी शीतल छाया में बैठकर मुझे असीम शांति मिली। इसलिए मेरा अंश तुम्हारे अंदर हमेशा विद्यमान रहेगा, जो तुम्हारी पूजा करेगा, उसे मेरी पूजा का फल प्राप्त होगा। शिव के इस वचन को सुनकर सभी देवों ने उन्हें भांग धतूरा, बेलपत्र और गंगा जल अर्पित किया। तभी से सावन मास का महत्व बढ़ गया। इस मास में जो भी व्यक्ति शिव पर गंगाजल अर्पित करता है, वो जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। ॐ नमः शिवाय करालं महाकाल कालं कृपालं ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करते हुए नित्य शिवजी की पूजा औैर आराधना करें। अथवा काल हरो हर, कष्ट हरो हर, दुःख हरो दारिद्य हरो। नमामि शंकर, भजामि शंकर, शंकर शंभो तव शरणम्। का भजन करें। यह भजन जीवन के सारे दुःख दूर कर देगा।

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