Tuesday 19 July 2011

जीएसटी की कठिन डगर

बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति का अध्यक्ष बनाकर केंद्र ने अपने हिसाब से भले ही बड़ा तीर मार लिया हो, लेकिन यह गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स के मोरचे पर व्याप्त गतिरोध दूर होने की तात्कालिक गारंटी नहीं है। हां, इससे यह फायदा जरूर होगा कि विपक्ष खासकर भाजपा शासित राज्य सरकारें अब जीएसटी में पहले की तरह अड़ंगा नहीं लगा पाएंगी।

हालांकि जीएसटी का विरोध करने वाले केवल भाजपा शासित राज्य ही नहीं हैं। यूपीए का घटक होने के बावजूद तमिलनाडु की पूर्ववर्ती द्रमुक सरकार को जीएसटी के कई प्रावधानों पर सख्त आपत्ति थी। इसमें कोई शक नहीं कि केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सेवा कर और वैट की जगह लेने वाला जीएसटी अप्रत्यक्ष कर सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। यह जहां उपभोक्ताओं के लिए सस्ता होगा, वहीं इससे देश भर में व्यापार के लिए अनुकूल माहौल भी पैदा होगा। इसीलिए केंद्र सरकार इस महत्वाकांक्षी कर सुधार को जल्दी से जल्दी लागू करना चाहती है। उसने विगत बजट सत्र में इससे संबंधित संविधान संशोधन विधेयक भी पारित कर दिया है, जो फिलहाल वित्त मंत्रालय की स्थायी समिति के पास है। लेकिन इस प्रस्तावित कर सुधार से जहां राज्यों के कई अधिकार छिन जाएंगे, वहीं उन्हें जबर्दस्त आर्थिक घाटा भी होने वाला है। अकेले सीएसटी (केंद्रीय बिक्री कर) खत्म कर देने से राज्यों को सालाना 80 हजार करोड़ रुपये का घाटा होने का अनुमान है। हालांकि केंद्र ने घाटे की भरपाई करने का वायदा किया है, लेकिन जितना बड़ा यह मामला है, उसमें यह आश्वासन काफी नहीं है।

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